सब से पहले हर वो लिखनेवाले छोटे बड़ो को सत सत वंदन और नमन करता हु.आज कुछ लिखने का मन किया आज के हालात पर,क्युकी हर जगह चाहे प्रिंट मिडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मिडिया कुछ अच्छा सुनने या पढने को नहीं मिल रहा,मैं कुछ कर तो नहीं सकता पर कुछ शब्द लिखकर अपनी भडाश जरुर निकाल शकता हु ताकि कुछ हदतक तसल्ली और शुकून दे शकू अपनेआप को.खासतौर पर मुझे जिस पर गर्व और सन्मान है उन सब लेखको जो विरोध और अपमान का शिकार हो रहे है,मैं खुद जो भी हु या कोई भी इंसान दुनिया का लेलो वो पुस्तक,वांचन के बिना अधुरा है उनके बारे मैं अनापशनाप मुझे तो बिलकुल स्वीकार्य नहीं मेरे बर्दास्त के बहार है और इतना ही दुखदायक है.कुछ भी लिखने के लिए वैचारिक विशुध्धि और सर्जनात्मक सोच/विषय चाहिए,मेरे हिसाब से लिखने की कला जो है इसके जैसी कला दुनिया मैं कोई नहीं और सबसे उपर है.लिखने की कला के लिए ५६ इंच के सीने के सिवा दिल,दिमाग और कायनात की हर सोच का नाप भी कम है .उसके लिए दुनिया का विशाल फलक पड़ा हुवा है कोई नाप या सीमा ओ की रोकटोक की जरुरत नहीं.इन लिखावाटो मैं से कुछ लेखन शक्ति को मान सम्मान या एवार्ड से नवाजा जाता है एसे ही