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Showing posts from February, 2016

कलम जिहाद (Writting)

मेरी बात को सबसे पहले अमेरिकन कवि और विवेचक एजरा पाउंड ने  साहित्य के बारे मैं जो कहा गया उससे शुरू करना चाहूँगा : “ Literature does not exist in a vacuum. Writers as such have a definite social function exactly proportional to their ability as writers.This is their main use. ” लेखक,कवि और साहित्यकारों का एक नीश्चीत सामाजीक फ़र्ज़ और एक निश्चीत कर्तव्य होता है.यह फ़र्ज़ कार्य,कर्तव्य,प्रतिबध्धता समाज और व्यवस्था के सामने जो पडकार,समस्या,अन्याय,समाजकी व्यथा-वेदना है उसको उजागर करना है.यह उजागर करने का काम कोई भी कारन बंध हुआ है या हो सकता है तो वह समाज,व्यवस्था का पतन निश्चीत है मार्टिन ल्युथर किंग के शब्दों मैं कहू तो “जब से इंसान अन्याय के सामने ‘चुप’ रहने की नीति अपनाता है,मूक बनकर बैठ रहता है,तबसे उसका ‘पतन’ शुरू होता है’’ उन्होंने व्यक्ति के बारे में बात कही है पर साहित्यकारो और समाज के लिए भी उतनी ही लागू पड़ती है.विशाल अर्थ मैं देखा जाए तो साहित्यकार जिस समाज मैं जी रहे है वह समाज के पडकार उनके ही पड़कार है बल्कि जिवनलक्ष्यी साहित्य मतलब समग्र मानवजात के सामने खड़े पड़कारो को उजागर क