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Showing posts from August, 2014

संघठन से देश को आगे बढ़ाये ..

इंसान सदीओ से संघठन की ताकत के बारेमे सुनता आया है.फिर भी वाही इन्सान अकेला है उसका मुख्य कारण घमंड हो सकता है जो इन्सान को एक होकर काम करने नहीं देता,इसी वजह से कुटुम्बे छोटे होते जा रहे है.कम्पनिए,धंधे,रोजगारी के अवसर बंध होने जा रहे है.हमे आजके इस आधुनिक युग मैं एक बात याद रखनी चाहिए की जो कुटुंब,कम्पनी,तंत्र या व्यवस्था मैं अगर संघठन नहीं होगा तो उसका वजूद/अस्तित्व नहीं रहेगा.जब इन्सान मैं अहंकार आ जाता है की वह दुसरो से ज्यादा एहमियत रखता है तब से समज लेना चाहिए की लोगो के दिलो मैं ,घरो मैं ,उद्योगों मैं या व्यवस्था मैं फर्क दिखने लगता है.इस सृष्टि मैं हर कोई इन्सान,जानवर या कोई भी चीज का उसका अपना एक महत्व रखती है.जब यही महत्व नजरअंदाज होता है तभी से कोई भी संघठन चाहे कितना भी मजबूत हो उसका पतन शुरू होने लगता है.हम सब एकदूसरे के बिना अधूरे है और अकेले रहकर हमारी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है.जो की संघठित रहकर हम कोई भी अशक्य,अशक्त या कठीन काम आसानी से कर शकेंगे. संघठन को दुसरे शब्दों मैं इश्वर,अल्लाह,जिसस,वहेगुरुजी,साईंबाबा के तौर पर भी जान सकते है,क्युकी वही जीवन,प्रकाश,प्रे

कहानी अमन की ..

मुबारक हो सियासतदान के घर अमन पैदा हुआ है.घर मैं ख़ुशी/जश्न,गाने बजाने का माहोल है .मीठाइया बांटी जा रही है गाँव मैं.धीरे धीरे अमन की परवरिश होती है,बड़ा होकर गाँव मैं गुमने निकलता है गली,चोराहे,मैदान,तालाब,खेत मैं, हर जगह गुजरते वक़्त उसे कुछ बाते,खुसी,खेल कूदने की आवाज़े सुनाई पड़ती है पर जब जगह के नजदीक पहुचता है तो हर जगह मैं वीरानी,खालीपन कहने का मतलब कुछ भी नहीं मिलता .अमन को बात समज मैं नहीं आती की माजरा क्या है ? नसीब से वो हर जगह पर अलग अलग समय पर उसे कोई मिल जाता है और उसे पूछने लेता है ..जब गली से निकलकर चोराहे पर आता है तो एक बुजूर्ग मिल जाते है उनसे अमन पूछता है तो उनका जवाब होता है की बहुत समय पहले यहाँ गाँव के इंसान बैठा करते थे और दुनियाभर की बाते करते थे पर वही इंसान बाद मैं हिन्दू-मुस्लिम से जाने गए ,उसके बाद की तो बात ही मत पुछो...फिर अमन आगे बढ़ता है वह गाँव के मैदान के पास वही आवाज़े सुनता है पर पास जाते ही कुछ भी नहीं ,उसी वक़्त उमरदराज चरवाहा निकलता है उससे अमन पूछता है तो उनका भी यही जवाब की यहाँ बरसो पहले इंसानी बच्चे खेला करते थे बाद मैं वही बच्चे हिन्दू-मुस्लिम से

धर्म पे राजनीती

कुछ दिनों से देश के हालात को टीवी , न्यूजपेपर में देखकर दिल को ठेश पहुची है बहुत दुःख हो रहा है की किस सोने की चिड़िया की बात करते रहे है किस हिंदुस्तान को हम आगे ले जाना चाहते है जो हिंदुस्तान कभी खुद आगे बढ़ना ही नहीं चाहता जो सिर्फ धर्म , जाती के ठेकेदारों के हाथो मैं खिलौना बनकर रहना रह गया है ? और हम नुमाईनदे बनकर हमारे देश का मजाक होते देख रहे है कुछ गिनेचुने सियासतदानो और धर्म के ठेकेदारों के हाथ मैं , ना ही हमे माँ भारती के सार्वभौमत्व , उनकी साक , इज्जत की पड़ी है और ना ही अपने घर , समाज और आनेवाली पीढ़ी की चिंता है बस हमारे दिल और दिमाग मैं भूसे भर गए है . नफ़रत , जहर के सिवा हमे गली , मोहल्ले , गाँव , शहर मैं कुछ नहीं मिलता ... क्या हम सही मैं हम हमारे ही भाई , बहने , छोटे , बड़ो मैं नफरत , जहर , कत्लेआम करके अपने आपको सचचा , सही धार्मिक कहलायेंगे ??? यही हमारी पहचान है ... जरा   बचपन मैं जान्किये , भूतकाल मैं अपने माँ - बाप , दा