हर साल गुजरात सरकार
गुणोंत्सव कार्यक्रम का आयोजन करती है.इस साल भी 6 और 7 अप्रैल को हर सरकारी
प्रायमरी स्कुलमें आयोजित हो रहा है जिसमे मंत्री,नेता और ऑफिसर स्कुलोकी विजिट
करेंगे.हर स्कुलमें तीन घंटा बिताएंगे और मूल्यांकन कर्नेगे.अब इस कार्यक्रमको
लेकर इसका समय फिक्ष करनेके लिए इसबार तीनबार परिपत्र चेंज किया सरकारकी फुरसत से
काम करनेके लिए.अब डर है की ज्यादा गर्मी को लेकर रातका समय कही फिक्स न कर दे !
सरकार है कुछ भी कर सकती है ..ये आनेवाले लोग जो सिर्फ तीन घंटे में पूरी स्कुल का
मूल्यांकन करेंगे ! एसी ऐतिहासिक घटनाए बनती है यहाँ.खासतौर पर मकसद विद्यार्थियो
के अभ्यासका मूल्यांकन करना होता है पर लगता है जेसे शिक्षकोका मूल्यांकन हो रहा
हो एसा आयोजन होता है.मतलब एसा माहोल खड़ा किया जाता है जसी एक शिक्षक ही है जो
सरकारकी सिस्टम में कामचोर है और बाकी सब दूधके धुले !! क्यों रेवेन्यु
डिपार्टमेंट में कोई उत्सव नहीं ? वहां क्या जमीनोके सोंदे साद्गीसे होते होंगे !?
क्यों गांधीनगर सचिवालय मैं कोई उत्सव नहीं ? वहां सब फाइलें अपनेआप रफ्तारसे
दौड़ती होंगी ? क्यों विधानसभामें कोई सुधार कार्यक्रम नहीं ? वहां माइकका उपयोग
मीठा मीठा बोलने या सिर्फ चिल्लानेके लिए ही होता होंगा ? क्यों बेंकोमें कोई
उत्सव नहीं ? उनके पैसोसे तो विदेशोमें बहुत उत्सव होते है की तीसरी शादी करनेके
के लिए 9000 करोड़ की सहाय करना उनकी परंपरा है ? इतने सालोसे गुणोत्सव,प्रवेशोत्सव
और कई कार्यक्रम हुवे पर अभीतक उसका आशय ही समजमे नहीं आया.
क्या कोई स्कुलका
विद्यार्थियोका,उसमे काम कर रहे शिक्षकोका एक दिन मैं मूल्यांकन हो सकता है ? यह
संभव है ? क्या भारत के भावी को तैयार करनेवालों को A B C D भी न आती हो एसे
लोगोके पास मूल्यांकन करवाना सही है ? जिस देशके भव्य इतिहासको सिखाते गर्व महसूस
करते थे वो गरिमाका कुछ सालोसे चीर हरण हो रहा है एसा लग रहा है.
मैं तो बस बात करके
रुक जाऊंगा क्युकी हमने अब सहनशक्ति को विकसित कर दिया है पर आज फीलिंग्स को रोक
नहीं पाया कारण मेरा बच्चे के साथ गाव के भी बच्चे है जो सरकारी स्कुलमें पढते है.जिनको
पढ़ाना शिक्षकोकी जिम्मेदारी है.यही जिम्मेदारियों को एसे
गुणोंत्सव,प्रवेशोत्सव,चुनाव,गिनती और न जाने कितने सरकारी काम है जो इन शिक्षकोके
मथ्थे पर दाल देते है एसे कार्यकर्मो से फुरसत मिलेगी तब ना पढ़ा पायंगे बच्चोको !
बच्चे जो पढने आते है वो मजदुर,किशान या छोटी नोकरी करनेवाले माँ बाप के अरमान
होते है की मेरी लड़की/लड़का पढ़ लिखकर कुछ बन जाएगी और उनकी परिस्थितियां सुधर
जाएँगी.एसे बच्चोको जब प्रचारका माध्यम बना दिया जाए,उनको मुफ्तमें सरकारी ब्रांड
बना दिया जाए तो सोचो क्या केसे सब करना चाहिए समजमें ही नहीं आता..शिक्षकोका मन
भी यही कह रहा है की बंध करो यह तमाशे ,हमें हमारा काम करने दे,हमे बस पढ़ाने
दीजिये..
Written On April 2018
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