"मुझे एक ही
सवाल बार बार पूछने की ज़रूरत नहीं है" 150 साल पहले ब्रिटिश सरकार के सामने
कानूनी कठहरे में खड़े होकर जोरिया कालिया नायक उर्फ जोरिया परमेश्वर नाम के एक
मजबूत आदिवासी युवक ने कलेक्टर को ये बात बोली थी.
देशकी आज़ादी में
आदिवासिओका योगदान बहुत बड़ा रहा है.अंग्रेजोके बड़े लश्कर के सामने चार दिन चले इस
भीषण संग्राममें 200 आदिवासी योध्धा शहीद हुवे.जिसमे जोरिया नायक के साथ 60 लोग
पकडे जाने की वजहसे अंग्रेजोने उनको खुलेमे फांसी दी गयी थी.जोरिया परमेश्वर
गुजरात के पंचमहाल जिले के जांबुघोडा के वडेक गाँव के रहनेवाले थे.उन्होंने
आदिवासीयों के जल,जमीन और जंगल बचानेके आंदोलनोंकी शुरुआत की थी.अंग्रेजी हुकुमतको
हटाकर नायकी राज बनानेका उनका सपना था.घुड़सवारी में माहिर थे.उन्होंने बहुत रजवाड़ो
के घुड़सवारो को मात दी थी.1868 में उन्होंने अंग्रेजोके सामने लड़त शुरू की और अपनी
बहादुरीका परचम लहराया था.16 अप्रैल 1868 को जांबुघोडा के राजवी जगतसिंह बारियाने
फांसी दी थी.आज भी उसके अवशेष जांबुघोडा के पहाडियों के पीछे अभी भी मौजूद है.
2012 में नरेन्द्र मोदीजीने यहाँ पर आदिवासी गौरव सभा आयोजित करके इन गौरान्वित
शाहिदोकी यादमे स्मारक बनानेकी घोषणा की थी चुकी यह घोषणा अभी भी कागजो पर ही है.
डॉ अरुण वाघेला, प्रमुख इतिहास
विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय) के अध्यापक जिन्होंने 3 साल तक यह
इतिहास जाने के लिए लोकली फिल्ड वर्क किया जिनके मुताबिक किए गए केस स्टडी के
विवरण के अनुसार, 150 पहले अंग्रेजों ने 1868में पंचमहल जिले में फारेस्ट
एक्ट लगाकर आदिवासी लोगों के अधिकारों को छीन लिया। तब तीन नेता जोरीया परमेंश्वर, रूप सिंह नायक और
गलाल नायक ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
आदिवासी युद्धनिति
ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था, लेकिन अंग्रेज इस
गुस्ताखिको सह न पाने की वजहसे आदिवासियों को खोजने के लिए, ब्रिटिश सरकार ने
पूना, ग्वालियर और अहमदाबाद जैसे शहरों से 1100 सैनिकों की एक
सेना को बुलाया और 15 दिनों तक फाइट टू फिनिश जैसी स्थिति पैदा की। 15 दिनों तक छुपा
छुपी चलती रही पर याद रहे जोरिया परमेश्वर बहुत चतुर था अपने हमशकल को लड़ने भेजता
था । आखिरकार, ब्रिटिशरो की छानबीन के 15 दिनों के बाद, जोरिया को पकड़
लिया गया और उसे अंग्रेजों के दरबार में भेज दिया गया,जोरिया और उसके
चार साथियों को फांसी दे दी गई, 23 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि 26 को देश
निकाल कर दिया गया। जिन पांच लोगों को फांसी दी गई थी, उनकी याद में 16
अप्रैल को प्रतिवर्ष शहीद दिवस मनाया जाता है।
इस आंदोलन को एक
अंग्रेजी पत्रिका में भी नोट किया गया था
अंग्रेजों के
खिलाफ आदिवासी नायक समुदाय के आंदोलन के बारे में जुलाई 1868 के एक नोट मे
अंग्रेजी पत्रिका, कॉर्नहिल में ’Our Little war with Naikdas’ शीर्षक से एक
लेख प्रकाशित किया गया था। लेख से पता चलता है कि नायक आंदोलन का महत्व
गुजरात-भारत तक सीमित नहीं था। इस राष्ट्रीय प्रथा और इसके नायकों की एक
महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को गुजरात में आज भी सराहना नहीं मिली है।
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